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फिल्म की कहानी नहीं हकीकत: कुंभ में बिछड़े पिता को मृत मानकर किया था दाह संस्कार, 24 साल बाद जिंदा लौटे

Prabhat Khabar
27 Dec, 2025
फिल्म की कहानी नहीं हकीकत: कुंभ में बिछड़े पिता को मृत मानकर किया था दाह संस्कार, 24 साल बाद जिंदा लौटे

Bihar News: कुंभ मेले में बिछड़ने के बाद जिस पिता को परिवार ने मृत मानकर पुतला बनाकर दाहसंस्कार तक कर दिया था, वही 24 साल बाद जिंदा लौट आए. पंजाब के एक आश्रम में मिली पहचान ने पूरे गांव को चौंका दिया.

Bihar News: (मनीष राज सिंघम, औरंगाबाद) कुंभ मेले में बिछड़े एक पिता को परिवार ने मृत मान लिया. वर्षों इंतजार के बाद सामाजिक परंपरा के अनुसार उनका पुतला बनाकर श्राद्ध और दाहसंस्कार तक कर दिया गया. लेकिन 24 साल बाद वही पिता जिंदा लौट आए. जैसे ही यह खबर गांव पहुंची, परिजनों की आंखों में आंसू और चेहरे पर खुशी एक साथ छलक पड़ी. यह कहानी किसी फिल्म की पटकथा नहीं, बल्कि बाइसन प्रखंड के सिरिस टोले भीमपुर गांव निवासी 65 वर्षीय रामप्रसाद महतो की सच्ची दास्तान है.

करीब 41 वर्ष की उम्र में रामप्रसाद महतो वर्ष 2001 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में लगे कुंभ मेले में परिवार से बिछड़ गए थे. उस दिन के बाद से उनका परिवार उन्हें खोजता रहा, लेकिन किस्मत ने वर्षों तक उन्हें एक-दूसरे से दूर रखा. अब 24 साल बाद रामप्रसाद अपने बेटे संतोष कुशवाहा के साथ घर लौट रहे हैं. वे पंजाब के जालंधर के पास एक आश्रम में मिले हैं और रविवार को गांव पहुंचेंगे.

कुंभ में बिछड़ने के बाद टूट गया था संपर्क

पुत्र संतोष कुशवाहा बताते हैं कि वर्ष 2001 के कुंभ मेले में पिता अचानक उनसे बिछड़ गए. मेले में काफी खोजबीन की गई. प्रयागराज के जूही स्थित एक आश्रम के महंत से भी संपर्क किया गया और उनके माध्यम से कई जगह तलाश हुई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. समय बीतता गया और परिवार की उम्मीदें धीरे-धीरे टूटने लगीं.

इसी बीच वर्ष 2009 में रामप्रसाद की पत्नी जसरिया देवी का निधन हो गया. नौ साल तक इंतजार करने के बाद परिवार ने मान लिया कि रामप्रसाद अब जिंदा नहीं हैं. सामाजिक परंपरा निभाते हुए परिवार ने पुतला बनाकर उनका श्राद्ध और दाहसंस्कार भी कर दिया. इसके बाद मानो उनके लौटने की हर उम्मीद खत्म हो चुकी थी.

22 साल तक दर-दर भटके, फिर मिला आश्रम का सहारा

कुंभ से बिछड़ने के बाद रामप्रसाद महतो करीब 22 वर्षों तक दर-दर भटकते रहे. वे कहां रहे, कैसे गुजारा किया. इसकी पूरी जानकारी आज भी स्पष्ट नहीं है. भटकते-भटकते वे पंजाब के जालंधर जिले के पास मलसियां इलाके के एक बीहड़ क्षेत्र में पहुंच गए. वहां वे सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे खामोशी से रहने लगे.

इसी दौरान आश्रम से जुड़े कुछ लोगों की नजर उन पर पड़ी. उनकी हालत देखकर आश्रम प्रबंधन ने उन्हें सहारा दिया और 15 जनवरी 2023 से वे उसी आश्रम में रहने लगे. वहीं से उनकी जिंदगी ने एक बार फिर नई करवट ली.

बिछड़ी बोली बनी पहचान की कड़ी

रामप्रसाद की पहचान की सबसे बड़ी कड़ी उनकी बिहारी बोली बनी. आश्रम से जुड़े एक ड्राइवर को बातचीत के दौरान उनकी भाषा पर शक हुआ. जब उनसे विस्तार से बात की गई तो उन्होंने अपने बेटे संतोष, गांव भीमपुर और जिले का नाम बताया. इसके बाद आश्रम प्रबंधन ने गांव के सरपंच से संपर्क साधा.

जानकारी की पुष्टि होते ही बिहार से एक ट्रक चालक को वहां भेजा गया और फिर पुत्र संतोष कुशवाहा से बातचीत हुई. कई स्तर पर पुष्टि के बाद यह साफ हो गया कि आश्रम में रह रहे बुजुर्ग वही रामप्रसाद महतो हैं, जिन्हें परिवार 24 साल पहले खो चुका था.

पिता के जीवित होने की खबर से गांव में खुशी

पिता के जीवित होने की खबर सुनकर पहले तो परिवार को विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जैसे-जैसे सच्चाई सामने आई, खुशी का ठिकाना नहीं रहा. संतोष की पत्नी मुखिया जसरिया देवी, प्रज्ञा सेना के सदस्य, मामा और पोते नंदन कुमार, सौरभ कुमार व पिंटू सहित पूरा परिवार भावुक हो उठा. गांव में भी यह खबर आग की तरह फैल गई और लोग हैरान रह गए.

आश्रम प्रबंधन से बातचीत और जरूरी कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अब संतोष अपने पिता को लेकर गांव लौट रहे हैं. रविवार को जब रामप्रसाद महतो गांव पहुंचेंगे, तो 24 साल बाद बिछड़ा यह परिवार फिर से एक हो जाएगा. ये कहानी इंतजार और इंसानी जज़्बातों की मिसाल बन गई है.

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