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लामू में इंटर के बाद डिग्री कॉलेज बना सबसे बड़ी जरूरत

17/12/2025
लामू में इंटर के बाद डिग्री कॉलेज बना सबसे बड़ी जरूरत
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प्लस टू स्कूल खुले, पर स्नातक पढ़ाई के लिए अब भी छात्रों को करना पड़ता है पलायन

प्लस टू स्कूल खुले, पर स्नातक पढ़ाई के लिए अब भी छात्रों को करना पड़ता है पलायन

प्रभात खबर टीम, मेदिनीनगर

राज्य सरकार ने उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने के उद्देश्य से प्रयास तेज कर दिये हैं. उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगभग सभी प्रखंडों में प्लस टू उच्च विद्यालय खोले गये हैं. इससे पलामू जिले के शैक्षणिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है. लेकिन इंटर पास करने के बाद जब विद्यार्थियों को स्नातक व परास्नातक की पढ़ाई करनी होती है, तब समस्या गंभीर हो जाती है.अधिकांश प्रखंडों में डिग्री कॉलेज नहीं होने के कारण छात्रों को जिला या अनुमंडल मुख्यालय, यहां तक कि दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है. आर्थिक रूप से सक्षम अभिभावक तो किसी तरह बच्चों की पढ़ाई जारी रख पाते हैं, लेकिन कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा सपना बनकर रह जाती है. इसमें सर्वाधिक संख्या छात्राओं की होती है. प्रखंड या आसपास कॉलेज नहीं होने के कारण अधिकांश लड़कियां इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं.

सुविधा विहीन बना डिग्री कॉलेज

छतरपुर प्रखंड के रजमनडीह स्थित सरकारी डिग्री कॉलेज का भवन निर्माण तो हो गया है, लेकिन यह सुविधाविहीन बना हुआ है. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किमी दूर स्थित इस कॉलेज में शिक्षकों की भारी कमी है, जिससे पठन-पाठन सुचारू नहीं हो पा रहा है. कॉलेज परिसर में कैंटीन समेत अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. आवागमन की सुविधा भी पर्याप्त नहीं होने से छात्र-छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है.

कमजोर छात्रों के लिए डिग्री कॉलेज सपना

मोहम्मदगंज प्रखंड में तीन सरकारी प्लस टू विद्यालय संचालित हैं. राजकीयकृत प्लस टू रहमानिया उच्च विद्यालय तारा में 370, मोहम्मदगंज स्तरोन्नत प्लस टू उच्च विद्यालय में 407 तथा झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय में 22 छात्राएं अध्ययनरत हैं. कुल 799 छात्रों के लिए इंटर के बाद स्नातक की पढ़ाई बड़ी चुनौती बन जाती है. इंटर उत्तीर्ण करने के बाद आर्थिक रूप से सक्षम अभिभावकों के बच्चे बाहर जाकर पढ़ाई कर लेते हैं, जबकि कमजोर वर्ग के छात्र स्नातक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. प्रखंड में डिग्री कॉलेज के लिए आरके प्लस टू रहमानिया उच्च विद्यालय तारा परिसर में पांच एकड़ भूमि उपलब्ध है. विद्यालय के प्राचार्य मनोज कुमार ने बताया कि यह भूमि खाली पड़ी है, जिस पर डिग्री कॉलेज का निर्माण किया जा सकता है.

विश्रामपुर प्रखंड में नहीं है सरकारी डिग्री कॉलेज

प्रखंड में एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज नहीं है. रेहला में वित्त रहित संत तुलसीदास डिग्री कॉलेज है, जहां केवल कला व वाणिज्य संकाय की पढ़ाई होती है, वह भी सीमित सीटों के साथ. विज्ञान संकाय की पढ़ाई की सुविधा नहीं है. छात्राओं के लिए रेहला में लक्ष्मी चंद्रवंशी महिला महाविद्यालय है, जो रामचंद्र चंद्रवंशी विश्वविद्यालय से संबद्ध है. इंटर उत्तीर्ण करने के बाद छात्रों को मेदिनीनगर, गढ़वा, रांची या अन्य राज्यों में जाना पड़ता है. प्रखंड में सरकारी डिग्री कॉलेज की मांग लंबे समय से की जा रही है, ताकि छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए भटकना न पड़े.

गढ़वा, मेदिनीनगर व रांची जाने की मजबूरी

पांडू प्रखंड में तीन प्लस टू उच्च विद्यालय संचालित हैं, लेकिन डिग्री कॉलेज नहीं है. यहां से इंटर उत्तीर्ण करने के बाद छात्रों को गढ़वा, मेदिनीनगर या रांची जाना पड़ता है. पांडू से गढ़वा की दूरी 30 किमी, मेदिनीनगर 55 किमी और रांची 220 किमी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रखंड में डिग्री कॉलेज खुलने से सभी वर्ग के छात्र अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेंगे.

सतबरवा में अब तक नहीं खुल सका डिग्री कॉलेज

करीब 80 हजार आबादी वाले सतबरवा प्रखंड में अब तक डिग्री कॉलेज की स्थापना नहीं हो सकी है. यहां कई प्लस टू और इंटर कॉलेज संचालित हैं, बावजूद इसके स्नातक पढ़ाई की सुविधा नहीं है. अभिभावकों का कहना है कि डिग्री कॉलेज नहीं होने से खासकर छात्राओं को आगे की पढ़ाई में परेशानी होती है.

पांकी के छात्रों को बाहर जाना पड़ता है

पांकी प्रखंड में भी एक भी सरकारी डिग्री कॉलेज नहीं है. हर वर्ष 1200 से 1500 छात्र-छात्राएं मैट्रिक व इंटर उत्तीर्ण करते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने को विवश हो जाते हैं. डंडार स्थित मजदूर किसान महाविद्यालय में बीए तक की पढ़ाई होती है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. बाहर जाकर पढ़ाई करने में आर्थिक बोझ बढ़ जाता है, जिससे निम्न वर्ग के मेधावी छात्र उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Akarsh Aniket

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