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8th Pay Commission से पहले सरकारी कर्मचारियों को बड़ा झटका! ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल नहीं करेगी सरकार

8th Pay Commission से पहले सरकारी कर्मचारियों को बड़ा झटका! ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल नहीं करेगी सरकार
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8th Pay Commission: 8वें वेतन आयोग से पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को बड़ा संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. लोकसभा में दिए गए जवाब में सरकार ने ओपीएस बनाम एनपीएस और यूपीएस को लेकर अपना रुख साफ किया. रिपोर्ट में राज्यों में ओपीएस की स्थिति, यूपीएस मॉडल की विशेषताएं और 8वें वेतन आयोग पर इसके संभावित असर को विस्तार से समझाया गया है, जिससे कर्मचारियों की पेंशन को लेकर तस्वीर साफ होती है.

8th Pay Commission: देश में 8वें वेतन आयोग को लेकर सरकारी कर्मचारियों की उम्मीदें तेज होती जा रही हैं, लेकिन इसी बीच केंद्र सरकार ने पेंशन व्यवस्था पर अपना रुख एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है. लोकसभा में पूछे गए सवालों के लिखित जवाब में वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को बहाल करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. यह बयान ऐसे समय आया है, जब 8वें वेतन आयोग की चर्चाओं के साथ ओपीएस बनाम एनपीएस और यूपीएस की बहस फिर गर्म हो गई है.

ओपीएस पर केंद्र सरकार का स्पष्ट रुख

सरकार ने संसद में बताया कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) या यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) के तहत आने वाले केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ओपीएस की वापसी की कोई योजना नहीं है. हालांकि कुछ राज्यों ने अपने कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू करने का फैसला किया है, लेकिन केंद्र के स्तर पर ऐसा कोई कदम उठाने का इरादा नहीं दिखता. 8वें वेतन आयोग के संदर्भ में यह संकेत अहम है, क्योंकि पेंशन बोझ भविष्य के वेतन आयोग की सिफारिशों पर सीधा असर डालता है.

राज्यों में ओपीएस, लेकिन फंड वापसी का रास्ता नहीं

राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने ओपीएस को दोबारा लागू करने की जानकारी दी है, लेकिन केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि एनपीएस के तहत जमा सरकारी और कर्मचारी अंशदान को राज्यों को वापस करने का कोई प्रावधान नहीं है. इससे यह साफ होता है कि ओपीएस की राह आसान नहीं है और 8वें वेतन आयोग के दौरान भी यह मुद्दा केंद्र के लिए चुनौती बना रहेगा.

यूपीएस मॉडल से सरकार का भरोसा

सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को एक फंड-आधारित संतुलित विकल्प के तौर पर पेश किया है. यूपीएस के तहत रिटायरमेंट से पहले अंतिम 12 महीनों के औसत बेसिक वेतन का 50% सुनिश्चित पेंशन के रूप में देने का प्रावधान है. बशर्ते, कर्मचारी की न्यूनतम 25 साल की सेवा हो. न्यूनतम 10 साल की सेवा पर 10,000 रुपये प्रति माह की सुनिश्चित पेंशन का प्रावधान भी है. 8वें वेतन आयोग की पृष्ठभूमि में यूपीएस को भविष्य की पेंशन व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है.

कर्मचारी योगदान और रिटायरमेंट विकल्प

यूपीएस के तहत वेतन से कटे योगदान की सीधी वापसी का प्रावधान नहीं है, लेकिन रिटायरमेंट के समय कर्मचारी को अपने कॉर्पस का 60% तक निकालने का विकल्प मिलता है. हालांकि, इससे मासिक पेंशन में अनुपातिक कटौती होती है. यह मॉडल ओपीएस से अलग है और यही फर्क 8वें वेतन आयोग की बहस में केंद्र बिंदु बन सकता है.

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8वें वेतन आयोग पर कितना पड़ेगा असर

पेंशन पर सरकार का सख्त रुख यह संकेत देता है कि 8वें वेतन आयोग में वेतन बढ़ोतरी और भत्तों पर तो चर्चा हो सकती है, लेकिन ओपीएस जैसी पुरानी व्यवस्था की वापसी की संभावना बेहद कम है. सरकार फिलहाल वित्तीय स्थिरता और नियंत्रित पेंशन दायित्व को प्राथमिकता देती दिख रही है. ऐसे में 8वें वेतन आयोग से कर्मचारियों को राहत मिल सकती है, लेकिन ओपीएस की उम्मीद फिलहाल अधूरी ही नजर आती है.

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KumarVishwat Sen

लेखक के बारे में

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Contributor

कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. और पढ़ें

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