Paush Amavasya 2025: हिंदू धर्म में इष्टकाल को पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों का सबसे प्रभावशाली समय माना गया है. मान्यता है कि इस अवधि में साधक, देवताओं और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच विशेष सामंजस्य बनता है, जिससे की गई पूजा, भोग और दान का फल कई गुना बढ़ जाता है. यही कारण है कि पर्व-तिथियों पर इष्टकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है.
पौष अमावस्या 2025 का विशेष संयोग
इसी कड़ी में पौष अमावस्या का विशेष महत्व है. वर्ष 2025 में यह तिथि आज 19 दिसंबर को है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन इष्टकाल प्रातः ब्रह्म मुहूर्त से प्रारंभ होकर दोपहर तक रहता है. यह समय पितरों के तर्पण, स्नान-दान और सूर्यदेव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करने से पितृदोष शांत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है.
इष्टकाल में भोग का महत्व
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि इष्टकाल में अर्पित भोग सीधे ईश्वर तक पहुँचता है. इस समय श्रद्धा के साथ लगाया गया भोग साधक की मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होता है. सात्त्विक और शुद्ध भोजन जब नियमपूर्वक भगवान को अर्पित किया जाता है, तो घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति बनी रहती है.
पितृ तृप्ति का श्रेष्ठ अवसर
पौष अमावस्या विशेष रूप से पितृ तृप्ति का पर्व मानी जाती है. इस दिन इष्टकाल में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यता है कि इससे परिवार में चल रही बाधाएँ दूर होती हैं और वंश में सुख-शांति बनी रहती है.
पापों का क्षय और सूर्य आराधना
इसके साथ ही इस दिन स्नान, दान और पूजा करने से पापों का क्षय होता है. जाने-अनजाने में किए गए दोष शांत होते हैं और साधक को पुण्य की प्राप्ति होती है. पौष मास सूर्यदेव से जुड़ा माना गया है, इसलिए अमावस्या पर सूर्य को अर्घ्य देना विशेष फलदायी होता है. इससे स्वास्थ्य, तेज और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.
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दान-पुण्य से संकटों से मुक्ति
धार्मिक विश्वासों के अनुसार पौष अमावस्या पर इष्टकाल में की गई पूजा से गृह क्लेश, आर्थिक संकट और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. इस दिन तिल, कंबल, अन्न, गुड़ और वस्त्र का दान करने का विशेष महत्व है. जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दिया गया दान कई गुना पुण्य प्रदान करता है.
आध्यात्मिक शांति और साधना
आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह दिन बेहद खास है. इष्टकाल में किया गया जप, ध्यान और साधना मन को स्थिर करता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है. “ॐ पितृदेवाय नमः” मंत्र का जप विशेष रूप से फलदायी माना गया है.
श्रद्धा और समृद्धि का पर्व
कुल मिलाकर, पौष अमावस्या पर इष्टकाल में की गई पूजा श्रद्धा, अनुशासन और कृतज्ञता का प्रतीक है, जो जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि लेकर आती है.







