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Osman Hadi : बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा की आग में जल उठा है. 2024 में बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ छात्र सड़क पर थे, जबकि इस बार वे अपने नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद हिंसा पर उतारू हैं. देश भर में राजनीतिक हिंसा का दौर जारी है. प्रथोम आलो, जैसे वहां के प्रतिष्ठित अखबार के कार्यालय में आग लगा दी गई है, जिससे वहां दहशत का माहौल है. उस्मान हादी की मौत और उसके बाद हिंसा से बांग्लादेश में अराजकता फैल गई है और फरवरी में होने वाले आम चुनाव पर भी संकट के बादल छा गए हैं. बांग्लादेश के लोगों को यह भरोसा था कि फरवरी में जब सरकार चुनी जाएगी तो देश में शांति कायम हो जाएगी, लेकिन अब एक बार फिर सबकुछ अनिश्चित हो गया है.
उस्मान हादी की मौत का क्या होगा राजनीतिक प्रभाव?
उस्मान हादी वो व्यक्ति है जिसने 2024 में बांग्लादेश में हुए छात्र आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. फरवरी में होने वाले चुनाव में उस्मान हादी सक्रिय भूमिका निभाने वाले थे. ऐसे में हादी पर होने वाला हमला और हमले के बाद हमलावर का भाग जाना बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. इस संबंध में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताया कि हादी की मौत दुर्भाग्यपूर्ण है.
लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि जब वे बांग्लादेश के इतने बड़े नेता थे और पिछले साल हुए आंदोलन में उनकी इतनी बड़ी भूमिका थी, तो फिर वहां की सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए क्यों कुछ नहीं किया. अब वे इस मामले में भारत में आरोप लगा रहे हैं और यह कह रहे हैं कि हमलावर भारत भाग गया. दरअसल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया डॉ मुहम्मद यूनुस अपनी विफलताओं का बोझ भारत पर डालकर खुद मुक्त होना चाहते हैं. यह स्थिति बहुत खराब है, जो यह साबित करती है कि बांग्लादेश में राजनीतिक दलों के बीच सिर्फ विचारधारा की लड़ाई नहीं है, वे हिंसात्मक प्रतियोगिता भी कर रहे हैं.
अराजकता की ओर बढ़ा बांग्लादेश, चुनाव के कितने हैं आसार?

अगस्त 2024 से बांग्लादेश में हिंसा का जो दौर शुरू हुआ, वह अंतरिम सरकार के गठन के बाद भी रूका नहीं. वहां विरोध प्रदर्शन जारी था, अब जबकि उस्मान हादी की मौत के बाद वहां हिंसा फिर शुरू हो गई है, वहां की सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वह शांति स्थापित करे. धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि अंतरिम सरकार ने फरवरी में चुनाव की घोषणा तो की थी, लेकिन हिंसा के इस माहौल में वहां अभी इतनी जल्दी चुनाव कराना संभव प्रतीत नहीं होता है.
हिंसा कैसे रूकेगी, इसका रास्ता भी नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश पूरी तरह अराजकता की ओर बढ़ गया है.बांग्लादेश में सरकारी तंत्र विफल है, मीडिया पर हमले हो रहे हैं और प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है, ऐसे में उन्हें किसी तारणहार की तलाश है.
भारत –बांग्लादेश संबंध पर क्या होगा असर?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जिस प्रकार वहां होने वाली हर अराजकता के लिए भारत को दोषी ठहरा रही है, उससे दोनों देशों के संबंध बिगड़ेंगे. भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन और हाल ही में बांग्लादेश के नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) के नेता हसनत अब्दुल्ला के विवादित बयान ने स्थिति को गंभीर बना दिया है.अब्दुल्ला ने कहा था कि वह भारत से पूर्वोत्तर के राज्यों यानी सेवन सिस्टर्स को अलग करने के बारे में सोच सकता है उसने भारत पर कई गंभीर आरोप भी लगाए थे, जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने भड़कते हुए वहां के उच्चायुक्त को तलब किया था.
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बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे यह लगता है कि वहां राजनीतिक अस्थिरता जारी रह सकती है. साथ ही साउथ एशियन रीजन में भी तनाव दिख सकता है. भारत–बांग्लादेश के संबंध अगर बिगड़ते हैं, तो इसका असर भारत, पाकिस्तान और चीन के संबंधों पर भी पड़ेगा.
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