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मिलिए एक ऐसी महिला से, जो कचरे से कमा रही 300000000000 रुपए

Prabhat Khabar
25 Jul, 2025
मिलिए एक ऐसी महिला से, जो कचरे से कमा रही 300000000000 रुपए

Success Story: बिजनेस करने वालों की माइंड कमाल की होती है. आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहे है जिन्होंने कचरे में भी अवसर को तलाशा और आज करोड़ो कमा रही है.

Success Story: अहमदाबाद की रहने वाली शिखा शाह ने कचरे से पैसे कमाने का रास्ता ढूंढा और आज उनकी कंपनी का अलग ही नाम है और अच्छा खासा पैसे भी कमा रही है.

शिखा शाह ‘ऑल्टमैट’ नाम की कंपनी की संस्‍थापक और सीईओ हैं. शिखा खेती के कचरे से कपड़ों के लिए फाइबर (रेशा) बनाती है, इस फाइबर का नाम ऑल्टैग है. आइए जानते है शिखा की कहानी.

Enterpreneurship और लीडरशिप में पोस्ट ग्रेजुएशन किया

शिखा के पिता विष्णु शाह ऑटोमोबाइल के कचरे से मेटल बनाने का बिजनेस करते थे. इस वजह से शिखा बचपन से ही वेस्‍ट मैनेजमेंट की बातें सुनती आ रही थी. ऐसे में उन्होंने इसी आइडिया से अपना कारोबार शुरू किया. शिखा ने निरमा यूनिवर्सिटी से बिजनेस की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका की बैब्सन यूनिवर्सिटी से Enterpreneurship और लीडरशिप में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.

ऑल्टमैट

साल 2019 में शिखा ने अपनी कंपनी ऑल्टमैट शुरू की. शिखा सबसे पहले किसानों से कृषि कचरा खरीदती उसका फाइबर बनाती. बता दें कि किसान मुख्य रूप से भोजन, दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए फसलें उगाते हैं और शिखा की कंपनी उनसे कृषि अपशिष्ट खरीदती है. पहले तो घास जैसी संरचना को कपास जैसी संरचना में बदला जाता है, फिर उससे सूत बनाया जाता है. इस धागे या सूत से कपड़े, एक्सेसरीज (बैग और जूते) और घरेलू सजावट जैसे कई सामान बनाए जाते हैं.

शिखा की कंपनी आज करोड़ो में कमाई करती है. शिखा का वेंचर पायलट प्रोजेक्ट से औद्योगिक पैमाने तक विकसित हो गया है. अभी की बात करें तो, फिलहाल कंपनी सालाना 30 करोड़ रुपये तक के फाइबर का उत्पादन करने में समर्थ है.

ऑल्टमैट का 11 बड़े ब्रांड हाउस के साथ कोलैबरेशन है. बताते चलें कि ऑल्टमैट एम्स्टर्डम स्थित ‘फैशन फॉर गुड’ एक्सेलरेटर नाम की पहल का हिस्सा है.

30 करोड़ रुपये

शिखा की ऑल्टमैट आज सालाना 1,000 टन फाइबर का उत्पादन करती है, जिससे 40 लाख कपड़े बनाए जाते हैं. कंपनी सालाना 30 करोड़ रुपये तक के फाइबर का उत्पादन करती है. ऑल्टमैट के फाइबर की कीमत कीमत 330 रुपये से 650 रुपये प्रति किलो के बीच है, जो उन्हें रेशम और ऊन की तुलना में अधिक किफायती बनाता है.

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