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Working Hours: काम के घंटे नहीं, काम की क्वालिटी मायने रखती है! इन्फोसिस के सह-संस्थापक का बड़ा बयान

Working Hours: काम के घंटे नहीं, काम की क्वालिटी मायने रखती है! इन्फोसिस के सह-संस्थापक का बड़ा बयान

Working Hours: भारत में वर्क कल्चर को लेकर बहस तेज हो गई है. इन्फोसिस के सह-संस्थापक एस डी शिबूलाल ने कहा कि काम में सफलता घंटों की संख्या से नहीं, बल्कि समय की गुणवत्ता से तय होती है. 70 घंटे काम करने की सलाह पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने फोकस, एकाग्रता और संतुलन को सबसे अहम बताया. उन्होंने कहा कि व्यक्ति को व्यक्तिगत, पेशेवर और सार्वजनिक जीवन के बीच संतुलन खुद तय करना चाहिए, तभी बेहतर परिणाम संभव हैं.

Working Hours: भारत में वर्क कल्चर को लेकर चल रही बहस एक बार फिर तेज हो गई है. दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस के सह-संस्थापक एस डी शिबूलाल ने सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह पर अपनी स्पष्ट राय रखी है. उन्होंने कहा कि काम में सफलता का पैमाना घंटों की संख्या नहीं, बल्कि समय की गुणवत्ता होनी चाहिए. यह बयान ऐसे समय आया है, जब लंबे वर्किंग आवर्स को लेकर पेशेवरों और युवाओं के बीच तीखी चर्चा चल रही है.

नारायणमूर्ति के बयान के बाद बढ़ा विवाद

इन्फोसिस के ही एक अन्य सह-संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति ने युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी. इसके बाद सोशल मीडिया से लेकर कॉरपोरेट जगत तक इस बयान पर बहस छिड़ गई. कई लोगों ने इसे देश की प्रगति के लिए जरूरी बताया, जबकि बड़ी संख्या में प्रोफेशनल्स ने इसे वर्क-लाइफ बैलेंस के खिलाफ करार दिया.

क्वालिटी टाइम ज्यादा अहम

आईआईएमयूएन की ओर से आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एस डी शिबूलाल ने नारायणमूर्ति के सुझाव पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मेरे लिए समय की लंबाई से ज्यादा, समय की गुणवत्ता मायने रखती है.” उन्होंने साफ किया कि अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक काम कर रहा है लेकिन उसका ध्यान बंटा हुआ है, तो उस काम का कोई वास्तविक मूल्य नहीं रह जाता.

पूरी तरह प्रेजेंट रहने की जरूरत

शिबूलाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर वह किसी कार्यक्रम या मीटिंग में बैठे हैं, तो उन्हें पूरी तरह वहीं मौजूद रहना चाहिए. उन्होंने कहा, “अगर मैं यहां बैठा हूं, तो मेरा ध्यान मोबाइल, नोटिफिकेशन या किसी और विचार में नहीं होना चाहिए. मुझे 100% यहीं उपस्थित रहना चाहिए.” उनके मुताबिक, यही फोकस और एकाग्रता काम की असली उत्पादकता तय करती है.

हर व्यक्ति की अपनी प्राथमिकताएं

शिबूलाल ने यह भी कहा कि समय का प्रबंधन हर व्यक्ति की अपनी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. कोई व्यक्ति काम को ज्यादा समय देना चाहता है, तो कोई परिवार या निजी जीवन को समय देना चाहता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवन के तीन प्रमुख आयाम व्यक्तिगत जीवन, पेशेवर जीवन और सार्वजनिक जीवन होते हैं और इन तीनों के बीच संतुलन कैसे बनाना है, यह पूरी तरह व्यक्ति का अपना निर्णय होता है.

जो चुनें, उसमें 100% समर्पण जरूरी

इन्फोसिस के पूर्व सीईओ रहे शिबूलाल (2011–2014) ने कहा कि व्यक्ति जो भी रास्ता चुने, उसे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ अपनाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आधे-अधूरे मन से किया गया काम, चाहे वह 8 घंटे का हो या 12 घंटे का, कभी बेहतरीन परिणाम नहीं दे सकता.

कॉरपोरेट जगत में बढ़ती लंबे घंटे की सोच

नारायणमूर्ति के बयान के बाद निजी और पेशेवर जीवन के संतुलन का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है. इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के शीर्ष प्रबंधन की ओर से 90 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की राय भी सामने आई थी, जिसने बहस को और हवा दी.

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घंटों से नहीं, सोच से बनती है सफलता

एसडी शिबूलाल का संदेश साफ है कि सफलता का रास्ता लंबे कामकाजी घंटों से नहीं, बल्कि फोकस, गुणवत्ता और संतुलन से होकर जाता है. ऐसे समय में जब युवा करियर और निजी जीवन के बीच जूझ रहे हैं, यह बयान उन्हें काम को देखने का एक नया नजरिया देता है.

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KumarVishwat Sen

लेखक के बारे में

KumarVishwat Sen

Contributor

कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. और पढ़ें

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