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जो हाथ गया सीने पर उसके, क्यूं सौ टुकड़ों में न बांट दिया, मुजफ्फरपुर गैंग रेप घटना से आहत शिक्षक की कविता

जो हाथ गया सीने पर उसके, क्यूं सौ टुकड़ों में न बांट दिया, मुजफ्फरपुर गैंग रेप घटना से आहत शिक्षक की कविता
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पटना : कहते हैं कि साहित्य और कविता समाज का आईना होते हैं. सम सामयिक घटना हो, या फिर सामाजिक समस्या, विद्रोह और समस्या के प्रति लोगों को आगाह करने की आवाज वहीं से उठती है. बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव प्रखंड के कोरान सराय पंचायत के राजकीय मध्य विद्यालय के शिक्षक पूर्णानंद मिश्रा […]

पटना : कहते हैं कि साहित्य और कविता समाज का आईना होते हैं. सम सामयिक घटना हो, या फिर सामाजिक समस्या, विद्रोह और समस्या के प्रति लोगों को आगाह करने की आवाज वहीं से उठती है. बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव प्रखंड के कोरान सराय पंचायत के राजकीय मध्य विद्यालय के शिक्षक पूर्णानंद मिश्रा पेशे से शिक्षक हैं. सामाजिक बुराई हो या फिर शिक्षा जगत की समस्याएं. देश और राज्य की समस्या के साथ समसामयिक घटनाक्रम पर उनकी कलम बोलती है. चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, उनका कवि मन व्यथित हो जाता है और वह अपनी कविता के जरिये समाज के सामने समस्या, निदान, गुस्सा और सिस्टम के प्रति अपनाक्षोम व्यक्त करते हैं. पूर्णानंद मिश्रा की कविताएं वर्तमान की घटनाओंपर एक करारा प्रहार होती हैं. सोशल मीडिया हो या फिर स्थानीय समाज उनकी कविता को काफी तरजीह देताहै. उनकी कविताएं काफी पढ़ी जाती हैं. मुजफ्फरपुर में हुई गैंग रेप की घटना से आहत पूर्णानंद मिश्र ने दिल को झकझोर देने वाले कविता की रचना की है. कविता को पढ़ने के बाद समझा जा सकता है कि एक शिक्षक का संवेदनशील मन कैसे कविता के जरिये अपने व्यथित मन को ईश्वर के सामने रखता है.

हवस की खातिर जिन लोगो ने
मानवता को शर्मसार किया,
मुजफ्फरपुर की धरती पर जिसने,
मासूम का बलात्कार किया!!

फटी तो होगी थोड़ी सी धरती
आसमान भी रोया होगा,
धरती गगन के रहते जिसने,
अपना अस्मत खोया होगा!!

खामोशी से उस चीर हरण को
हे माधव ! कैसे तुम देख रहे थे,
तीन दुशासन मिलकर कैसे,
नोच वस्त्र को फेंक रहे थे!!

चला सुदर्शन चक्र वही पर,
क्यूं धड़ को उनके न काट दिया,
जो हाथ गया था सीने पर उसके,
क्यूं सौ टुकड़ों में न बांट दिया!!

क्या सचमुच इस कलियुग में केशव,
तुम भी अब लाचार हुए,
या केवल अर्जुन की खातिर
कृष्ण रूप अवतार हुए!!

बड़े प्यार से मैया बाबा ने
गोद में जिसको पाला होगा,
कैसे उन बहशीलोगों ने,
पटक जमीं पर डाला होगा!!

हाय!यह कैसा समय
यह कैसा दौर चला नामर्दी का,
बेटी होना सौभाग्य कहां?
जहां पुरुष हुआ खुदगर्जी का!!

कलम कह रही पूर्णानंद की
पुरुषत्व को हमारे माफ करो,
उठो माधव, आंखें‎ खोलो,
उस बेटी का इंसाफ करो!!

पूर्णानंद मिश्रा इससे पूर्व भी सामाजक की हृदयविदारक घटनाओं और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर कविताओं की रचना कर चुके हैं. मुजफ्फरपुर में हैवानियत का नंगा नाच होने के बाद जब यह खबर मीडिया के माध्यम से पूरे प्रदेश में फैली, उसके बाद उन्होंने कविता की रचना की. पूर्णानंद मिश्र ने प्रभात खबर डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि वह एक नामी गिरामी कवि नहीं है, लेकिन कविता के मर्म को समझने के साथ उसकी उपयोगिता को भली भांति जानते हैं. उनका कहना है कि वह रचना और गुण ही क्या जो सामाजिक समस्याओं पर अपना उद्गार व्यक्त नहीं कर सके. उनका मानना है कि कविता समाज की आत्मा है . इसके माध्यम से अपनी बात के साथ लोगों की मनोभावना को बेहतर तरीके से अंकित किया जा सकता है.

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