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क्या पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी नकली है?

Prabhat Khabar
8 Nov, 2025
क्या पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी नकली है?

Prithviraj Chauhan and Sanyogita : पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता भारतीय इतिहास के दो ऐसे किरदार हैं, जिनकी प्रेम कहानी बहुत चर्चित है. इन दोनों का प्रेम ‘लव इन फर्स्ट साइट’ का नहीं था, बल्कि इन दोनों ने एक दूसरे की तस्वीरों से ही इश्क कर लिया और परिवार की दुश्मनी के बावजूद अपने संबंध को शादी तक पहुंचाया था. हालांकि इनके प्रेम का अंत दुख भरा ही रहा क्योंकि तराइन की युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद जब उनकी हत्या हो गई तो संयोगिता ने भी सती होकर अपने प्राण त्याग दिए थे.

Prithviraj Chauhan and Sanyogita : पृथ्वीराज चौहान की गिनती भारत के महान राजाओं में की जाती है, जिसने भारत पर मुस्लिम राज की स्थापना को रोकने के लिए मुहम्मद गोरी से संघर्ष किया था. हालांकि मुहम्मद गोरी ने तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया और उसे लेकर अफगानिस्तान गया, जहां उसकी हत्या कर दी गई. पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद मुहम्मद गोरी ने भारत में मुसलमानों का स्थायी शासन स्थापित किया और उसके प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की. पृथ्वीराज के जीवन का यह पक्ष उसे एक महान राजा के रूप में स्थापित करता है,लेकिन उनके जीवन का एक पक्ष और भी है, जिसमें वे एक अनोखे प्रेमी के रूप में नजर आते हैं और अपनी प्रेयसी को पाने के लिए उसका अपहरण तक कर गुजरते हैं.

कौन थी संयोगिता जिसके दीवाने थे पृथ्वीराज चौहान?

संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थी. राजा जयचंद गाहड़वाल वंश के राजा थे. इनका कालखंड 12वीं शताब्दी का है.राजकुमारी संयोगिता के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद खूबसूरत थी. संयोगिता ने दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की वीरता की काफी कहानी सुनी थी और उन्हें अपना पति मान लिया था. संयोगिता के पिता जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच दुश्मनी थी, इसलिए जब जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रखा तो पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नहीं किया था. पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का पुतला बनाकर उसे दरवाजे पर द्वारपाल की तरह खड़ा कर दिया था. संयोगिता ने जब अपने स्वयंवर में पृथ्वीराज को नहीं देखा और उसका पुतला खड़ा पाया, तो उसने वरमाला पुतले के गले में डाल दी. संयोगिता के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि वह एक स्वतंत्र विचारों वाली स्वाभिमानी युवती थी.

कैसे हुआ था संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान का विवाह?

ऐतिहासिक साक्ष्यों की बात करें तो इतिहास में इस बात की स्वीकृति बहुत कम दिखती है कि संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान का विवाह हुआ था. कई इतिहासकार तो संयोगिता के अस्तित्व पर भी सवाल उठाते हैं. लेकिन पृथ्वीराज रासो में चंद बरदाई ने संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के विवाह का बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है. चंद बरदाई लिखते हैं कि संयोगिता के स्वयंवर का निमंत्रण जब पृथ्वीराज चौहान के पास नहीं गया, तो उसने पृथ्वीराज को गुप्त संदेश भिजवाया कि वह उनके अलावा किसी और से विवाह नहीं करेगी. पृथ्वीराज चौहान संयोगिता के स्वयंवर में भेष बदलकर पहुंचे थे. जब संयोगिता ने किसी भी राजा के बजाय पृथ्वीराज चौहान के पुतले को वरमाला पहनाई, तो छुपकर बैठे पृथ्वीराज चौहान बाहर आ गए और उन्होंने संयोगिता को उठाकर अपने घोड़े पर बैठा लिया और वहां से भाग गए. पृथ्वीराज चौहान संयोगिता का अपहरण कर उसे दिल्ली लाए और वहां उससे विवाह किया. पृथ्वीराज चौहान संयोगिता से बहुत प्रेम करते थे, साथ ही उसका बहुत सम्मान भी करते थे.

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क्या पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी को इतिहास मानता है?

भारतीय इतिहास की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी. दुखद यह है कि इस प्रेम कहानी को लेकर कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं. इतिहासकारों का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी साहित्यिक सच है. इस लोककथा को बहुत चर्चित कर दिया गया है, सच्चाई इस कहानी से दूर है. हालांकि पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंद बरदाई ने इस प्रेम कहानी को अपनी रचना में स्थान दिया है. इतिहासकार मानते हैं कि अगर यह सच होता, तो इसका जिक्र समकालीन लेखक जरूर करते, जो संभव नहीं हो पाया है. यह इस बात का प्रमाण है कि संयोगिता के साथ पृथ्वीराज का प्रेम अगर सच है भी तो उसे महिमा मंडित करके बताया गया है.

पृथ्वीराज का प्रिय मित्र कौन था?

उनका दरबारी कवि चंद बरदाई.

क्या पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण कर उसे दिल्ली लाया था?

हां, यह बात सच है.

संयोगिता कहां की राजकुमारी थी?

संयोगिता कन्नौज की राजकुमारी थी.

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