Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में इस बार सबसे अधिक निगाहें सीमांचल पर टिकी हैं। नेपाल और बंगाल के बोर्डर से सटा यह इलाका अब राजनीतिक तौर पर सत्ता की चाबी बन चुका है. यहां की मुस्लिम बहुल आबादी, बदलते समीकरण और नई ताकतों की एंट्री ने मुकाबले को बेहद रोचक बना दिया है. दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सीमांचल यानी किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया इलाका सबसे अहम बन गया है. यह इलाका न सिर्फ नेपाल और बंगाल की सीमा से जुड़ा है, बल्कि यहां 40% से ज्यादा मुस्लिम आबादी भी है. सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. किशनगंज में करीब 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38% मुसलमान रहते हैं. पारंपरिक रूप से यह इलाका राजद-कांग्रेस के ‘मुस्लिम-यादव’ (MY) समीकरण का गढ़ रहा है, लेकिन 2020 में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 5 सीटें जीतकर इस पुराने समीकरण में बड़ी सेंध लगा दी थी.
100 सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है AIMIM
इसबार के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM करीब 100 सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है, जिनमें सीमांचल की 35 मुस्लिम-बहुल सीटें प्रमुख हैं, जैसे ठाकुरगंज, बहादुरगंज, अमौर, बायसी और कोचाधामन. ओवैसी का मकसद मुस्लिम वोट को सिर्फ “बैंक” नहीं बल्कि “निर्णायक ताकत” बनाना है. वे राजद और कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने मुसलमानों को सिर्फ वोट के रूप में इस्तेमाल किया, सत्ता में हिस्सेदारी नहीं दी.
PK की 40-20 रणनीति
दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज भी सीमांचल में तेजी से पैर पसार रही है. उनकी “40-20 की रणनीति” के तहत वे 40% हिंदू और 20% मुस्लिम वोट को जोड़कर तीसरा विकल्प बनाना चाहते हैं. जन सुराज ने अब तक जारी उम्मीदवारों में कई मुस्लिम चेहरों को शामिल किया है. उनका फोकस विकास, शिक्षा और रोजगार पर है, जो सीमांचल के पढ़े-लिखे युवाओं को आकर्षित कर सकता है. फिलहाल सीमांचल के मुस्लिम वोटर अब पहचान की राजनीति से आगे बढ़कर विकास और स्थिरता की ओर झुकाव दिखा रहे हैं. समुदाय के भीतर सुरजापुरी, शेरशाहबादी और कुल्हैय्या जैसी उप-जातियां भी चुनावी रुझान को प्रभावित करती हैं.
2020 के चुनाव में 24 में से 12 सीटें एनडीए के नाम
2020 के चुनाव में एनडीए ने 24 में से 12 सीटें जीती थीं, महागठबंधन ने 7 और AIMIM ने 5 सीटें अपने नाम की थीं. इस बार AIMIM और जन सुराज, दोनों ही विपक्ष के पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती दे रहे हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सीमांचल अब सिर्फ सीमा नहीं, बल्कि बिहार की सत्ता की कुंजी बन चुका है.





