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जादोपटिया कला को नया आयाम दे रहे हैं श्याम विश्वकर्मा

19/12/2025
जादोपटिया कला को नया आयाम दे रहे हैं श्याम विश्वकर्मा
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आधुनिक शिल्प का सुंदर समन्वय

साहिबगंज

जादोपटिया कला संथाल जनजाति की एक प्राचीन एवं लोकप्रिय लोक चित्रकला है, जो आज लुप्तप्राय की स्थिति में पहुंच चुकी है. इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने और नयी पहचान दिलाने का कार्य प्रसिद्ध चित्रकार एवं मूर्तिकार श्याम विश्वकर्मा द्वारा किया जा रहा है. उन्होंने जादोपटिया कला को कागज पर उकेरने के साथ-साथ पहली बार टेराकोटा माध्यम के जरिए इसे मूर्त रूप देने का अभिनव प्रयास किया है.

टेराकोटा में पहली बार जादोपटिया कला

श्याम विश्वकर्मा ने जादोपटिया कला को स्थायित्व प्रदान करने के उद्देश्य से इसे टेराकोटा के रूप में विकसित किया. इस प्रक्रिया में वे सबसे पहले मिट्टी का प्लेट तैयार करते हैं, इसके बाद आदिवासी जनजीवन, उनकी संस्कृति और पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बारीकी से उकेरते हैं. तत्पश्चात कलाकृति को भट्ठी में पकाया जाता है और प्राकृतिक रंगों से रंगकर सुखाया जाता है. इस तरह तैयार की गयी कलाकृति पारंपरिक कला और आधुनिक शिल्प का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करती है.

केंद्र सरकार से मिली मान्यता, देशभर में बढ़ रही मांग

जादोपटिया कला पर आधारित श्याम विश्वकर्मा की एक विशिष्ट टेराकोटा कलाकृति वर्ष 2023 में हस्तकरघा एवं वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार को भेजी गयी थी. मंत्रालय ने इस कलाकृति को खरीद लिया, जो वर्तमान में उसके संरक्षण में सुरक्षित है. यह उपलब्धि झारखंड की लोककला के लिए एक महत्वपूर्ण सम्मान मानी जा रही है. श्याम विश्वकर्मा की कलाकृतियों की मांग लगातार बढ़ रही है. हाल ही में पलामू के जिला न्यायालय परिसर में उनकी एक विशाल टेराकोटा कलाकृति स्थापित की गयी है, जिसे आमजन और कला प्रेमियों द्वारा खूब सराहा जा रहा है.

जादोपटिया कला संग्रहालय की योजना

श्याम विश्वकर्मा अब जादोपटिया कला पर आधारित एक म्यूजियम स्थापित करने की योजना बना रहे हैं. इसके लिए उन्होंने अपने डिजाइन भी तैयार कर लिए हैं. वे झारखंड सरकार और जिला प्रशासन के सहयोग से इस योजना को साकार करना चाहते हैं, ताकि लुप्तप्राय होती इस कला को संरक्षित किया जा सके और झारखंडी कला एवं संस्कृति को उसका उचित सम्मान मिल सके. कला विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि यह संग्रहालय स्थापित होता है तो जादोपटिया कला को नयी पहचान मिलेगी और आने वाली पीढ़ियां अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ सकेंगी. श्याम विश्वकर्मा का यह प्रयास झारखंड की लोककला संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम है.

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