Doping Scandal: खेलों को लेकर दुनिया में दो मॉडल हैं. पहला मॉडल है अमेरिका, चीन और रूस का, जहां की व्यवस्थाएं सिलसिलेवार तरीके से मेडल जीतने वालों की फौज तैयार करती है. दूसरा तरीका है ग्रेट ब्रिटेन का, जिसमें वे इंग्लिश प्रीमियर लीग से लेकर विंबलडन जैसे बड़े खेल प्रॉपर्टी तैयार करते है, फिर इससे आने वाले कई वर्षों तक पैसा कमाते हैं. भारत में दोनों मॉडल में आगे जाने की संभावनाएं हैं. भारत मेडल तालिका में भी आगे जा सकता है और बड़ी जनसंख्या तथा बढ़ते मध्य वर्ग की वजह से प्रीमियर लीग जैसी बड़ी प्रॉपर्टी भी तैयार कर सकता है. लेकिन भारत को दोनों ही मॉडल में आगे जाने के लिए एंटी डोपिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है. इस संदर्भ में बीते तीन साल की घटनाएं खास तौर पर चिंताजनक हैं.
भारत विश्व डोपिंग स्कैंडल का केंद्रबिंदु बनता जा रहा है. अकेले 2024 में डोपिंग से संबंधित 260 पॉजिटिव मामले देश में रिपोर्ट हुए. इनमें सबसे ज्यादा 76 मामले एथलेटिक्स में, 43 मामले वेटलिफ्टिंग में और 26 मामले कुश्ती में सामने आये थे. जुलाई में पेरिस अोलिंपिक की सेमीफाइनलिस्ट रितिका हुड्डा पॉजिटिव पायी गयीं और उन्हें सस्पेंड किया गया. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में सिर्फ एक एथलीट ने भाग लिया और बाकी सब इसलिए स्पर्धा से भाग गये, क्योंकि उनके पॉजिटिव चिह्नित होने का डर था. वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी वाडा ने 16 दिसंबर को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लगातार तीसरे साल भारत को डोपिंग के मामले में सबसे बुरा देश चिह्नित किया है. इससे पहले 2022 और 2023 में भी वाडा ने भारत को डोपिंग के दोष के मामले में सबसे बुरा देश चिह्नित किया था.
ऐसा तब है, जब भारत को 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी मिली है और भारत ने 2036 में ओलिंपिक की मेजबानी की दावेदारी पेश की है. लेकिन अगर डोपिंग का यह सिलसिला जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया हमें डोपिंग कैपिटल मानने लगेगी. इससे 2047 में खेलों में विकसित भारत बनाने के संकल्प को बड़ा धक्का लगेगा. तब भारतीय एथलीट न तो बड़ी प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा ले सकेंगे, न भारत खेल में बड़ी शक्ति बन पायेगा. भारत ने अब तक सिर्फ क्रिकेट में ही इंडियन प्रीमियर लीग नाम की ग्लोबल प्रॉपर्टी तैयार की है. ऐसा इसलिए भी संभव हो सका है, क्योंकि क्रिकेट में डोपिंग को लेकर नियम व्यापक नहीं हैं.
डोपिंग के मामलों में भारत के बाद फ्रांस का नंबर आता है, जहां डोपिंग के 91 पॉजिटिव मामले सामने आये. जबकि इटली में 85, अमेरिका ओर रूस में 76-76 और जर्मनी 54 मामलों के साथ पांचवें नंबर पर रहा. भारत को छोड़ इस सूची में शामिल शेष देश न सिर्फ भारत की तुलना में अधिक वैश्विक मुकाबलों में हिस्सा लेते हैं, बल्कि भारत से बड़े अंतर से मेडल भी जीतते हैं. इस कारण भारत की मौजूदा स्थिति ओर चिंताजनक हो जाती है. इससे पहले कि यह समस्या ओर विकट हो जाये, इस पर तत्काल प्रभाव से विराम लगाने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी है कि सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे. इसके अलावा तत्काल प्रभाव से अल्पकालीन ओर दीर्घकालीन कदम उठाने की जरूरत है.
पहला, डोपिंग में सबसे अधिक मामले एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग ओर कुश्ती में सामने आये हैं. लिहाजा इन तीन खेल संगठनों से बात कर मॉडल प्रोजेक्ट के तौर पर दुरुस्त एंटी डोपिंग व्यवस्था बनाये जाने की जरूरत है. इसके तहत स्कूल से यूनिवर्सिटी स्तर पर और खासकर ‘खेलो इंडिया गेम्स’ में खिलाड़ियों का व्यापक टेस्ट कराया जाना, इन खेलों से संबंधित कोच पर जिम्मेदारी तय करना और ‘खेलो इंडिया गेम्स’ व नेशनल गेम्स से पहले भाग ले रहे खिलाड़ियों का डोपिंग जागरूकता को लेकर क्लिनिक कराया जाना शामिल है. दूसरा, कोच के नेटवर्क को लेकर राज्य ओर केंद्र के स्तर पर एक ट्रैकिंग तकनीक तैयार करना जरूरी है, जिसमें न सिर्फ कोच को डोपिंग को लेकर जागरूक करने की जरूरत है, बल्कि लगातार गलती होने पर उन्हें चिह्नित कर व्यवस्था से बाहर करने की जरूरत है. तीसरा, इन तीन खेल संगठनों को साफ तौर पर डोपिंग से संबंधित अंतराष्ट्रीय मानक का मैन्युअल साझा किया जाये, जिम्मेदारी तय की जाये ओर कड़े नियम तय किये जायें.
ऐसे ही, दीर्घकालीन कदम के तौर पर डोपिंग को लेकर शोध ओर विकास के स्पेशलाइज्ड सेंटर हर राज्य में विकसित किये जायें. इन सेंटरों को हर स्कूल, अकादमी ओर यूनिवर्सिटी के साथ ऑनलाइन जोड़ा जाये. दूसरा, गैर सरकारी ओर युवा संगठनों को शामिल कर एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाया जाये, जिसमें ड्रग्स से लेकर सप्लीमेंट्स की समस्या को भी जोड़ा जाये, जिससे हमारे युवाओं की शक्ति सही कामों में लग सके. तीसरा, भारत की एंटी डोपिंग व्यवस्था को क्रमवार तरीके से इंग्लैंड और जर्मनी जैसे बड़े देशों के मॉडल के आसपास लाया जाये. अगर जरूरत पड़े, तो भारत किसी विकसित देश के साथ समझौता करके आगे बढ़ सकता है. अब वक्त आ गया है कि भारत 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स को लक्ष्य मानकर इस दिशा में व्यापक और सक्रिय तौर पर काम करे, जिससे डोपिंग के दाग को हमारे खेलों से हटाया जा सके. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)










