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पश्चिम एशिया में साझेदारी पर भारत का जोर

पश्चिम एशिया में साझेदारी पर भारत का जोर
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PM Modi Three Countries Visit: तीन देशों की प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा भारत की दीर्घकालिक विदेश नीति का हिस्सा थी. जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान के साथ संबंधों को सुदृढ़ कर भारत पश्चिम एशिया और अफ्रीका में अपनी उपस्थिति को विस्तार दे रहा है और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को और बल प्रदान कर रहा है. पश्चिम एशिया में भारत स्थिरता और व्यावहारिक साझेदारियों पर जोर दे रहा है, जबकि अफ्रीका में वह एक सम्मानजनक और समान भागीदारी आधारित दृष्टिकोण अपना रहा है.

PM Modi Three Countries Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन देशों, जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की हालिया यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब वैश्विक व्यवस्था उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है, आपूर्ति शृंखलाएं खंडित हो रही हैं और व्यापार को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे माहौल में यह यात्रा भारत की सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति को दर्शाती थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर अपने रणनीतिक विकल्पों का विस्तार करना, आर्थिक साझेदारियों में विविधता लाना और वैश्विक दक्षिण के विश्वसनीय नेता के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना था. यह यात्रा प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक विदेश नीति का हिस्सा थी.

भारत के लिए जॉर्डन कई मामले में महत्वपूर्ण

प्रधानमंत्री की जॉर्डन यात्रा दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की पचहत्तरवीं वर्षगांठ के अवसर पर हुई, जो पश्चिम एशिया में भारत की संतुलित और व्यावहारिक नीति को रेखांकित करती है. जॉर्डन ऐसा देश है, जो क्षेत्रीय अस्थिरता के बावजूद मध्यमार्गी और स्थिर भूमिका निभाता रहा है. भारत के लिए जॉर्डन न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सुरक्षा, आतंकवाद रोधी सहयोग और क्षेत्रीय शांति के संदर्भ में भी अहम साझेदार है. प्रधानमंत्री की जॉर्डन के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत में क्षेत्रीय घटनाक्रमों और द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की गयी. भारतीय प्रवासी समुदाय के साथ संवाद ने दोनों देशों के बीच जनसंपर्क व सांस्कृतिक रिश्तों को और मजबूत किया, जो किसी भी स्थायी साझेदारी की बुनियाद होते हैं. दूसरे चरण में इथियोपिया की यात्रा विशेष रणनीतिक और प्रतीकात्मक महत्व रखती थी. यह प्रधानमंत्री मोदी की इथियोपिया की पहली यात्रा थी, जो अफ्रीकी संघ के मुख्यालय का भी केंद्र है. भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता दिलाने में नयी दिल्ली की भूमिका के बाद यह यात्रा अफ्रीका के साथ भारत की प्रतिबद्धता को और स्पष्ट करती है. इथियोपिया की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत की लोकतांत्रिक यात्रा, वैश्विक दक्षिण की साझा चुनौतियों और सहयोग की संभावनाओं पर बल दिया. यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अफ्रीका को केवल सहायता प्राप्तकर्ता के रूप में नहीं, वैश्विक शासन में समान भागीदार के रूप में देखता है.

पीएम मोदी की विदेश यात्रा भारत-अफ्रीका संबंधों में एक नयी ऊर्जा का संकेत दिया

अफ्रीका के संदर्भ में भारत की नीति धीरे-धीरे विकास सहायता से आगे बढ़कर व्यापार, निवेश और संस्थागत सहयोग की ओर बढ़ रही है. इथियोपिया, जिसकी आबादी, भौगोलिक स्थिति और क्षेत्रीय प्रभाव उल्लेखनीय है, भारत के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार बन सकता है. इस यात्रा ने भारत-अफ्रीका संबंधों में एक नयी ऊर्जा का संकेत दिया, जिसमें दोनों पक्ष अपने विकास लक्ष्यों को साझा हितों के माध्यम से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. प्रधानमंत्री की यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और ठोस परिणाम ओमान की यात्रा के दौरान सामने आया. भारत और ओमान के बीच राजनयिक संबंधों के सत्तर वर्ष पूरे होने के अवसर पर दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किये. यह खाड़ी क्षेत्र में भारत का दूसरा मुक्त व्यापार समझौता है और पश्चिम एशिया में भारत की आर्थिक रणनीति को नयी दिशा देता है. जब वैश्विक व्यापार संरक्षणवाद की ओर झुक रहा है, तब यह समझौता भारत को नये बाजारों तक पहुंच और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है. भारत-ओमान समझौते के तहत भारत को करीब 98 प्रतिशत ओमानी टैरिफ लाइनों पर शुल्क मुक्त पहुंच मिलेगी, जिससे भारतीय निर्यातकों के लिए वस्त्र, इंजीनियरिंग उत्पाद, रत्न एवं आभूषण, कृषि उत्पाद और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में नये अवसर खुलेंगे. सेवा क्षेत्र में यह समझौता विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, शिक्षा और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त है. पेशेवरों के लिए वीजा उदारीकरण और लंबे प्रवास की अनुमति भारतीय कंपनियों और कुशल श्रमिकों के लिए ओमान में अवसरों का विस्तार करेगी. इस समझौते का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक पहलू कच्चे संगमरमर के आयात से जुड़ा है. ओमान ने भारत के लिए कच्चे संगमरमर के निर्यात पर लगी रोक हटायी है, जिससे भारत की तुर्किये पर निर्भरता कम होगी. ओमान से कच्चा माल आयात करने से भारत में घरेलू प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार सृजित होंगे और ‘मेक इन इंडिया’ को मजबूती मिलेगी. यह फैसला दर्शाता है कि भारत अब आपूर्ति शृंखलाओं को सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देख रहा है. भारतीय उद्योग जगत ने ओमान के साथ मुक्त व्यापार समझौते का स्वागत किया है. इसे निर्यात वृद्धि तथा निवेश के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखा जा रहा है और इससे वस्त्र, धातु और सेवा क्षेत्रों में उल्लेखनीय लाभ की संभावना है. ओमान के लिए भी यह समझौता अपनी हाइड्रोकार्बन आधारित अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ने और भारत जैसे बड़े उपभोक्ता बाजार तक पहुंच बनाने का माध्यम होगा.

वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है

प्रधानमंत्री की तीनों देशों की यात्रा समग्र रूप से भारत की बहुआयामी विदेश नीति को दर्शाती है, जिसमें कूटनीति, अर्थव्यवस्था और रणनीतिक सोच का संतुलित समन्वय है. पश्चिम एशिया में भारत स्थिरता और व्यावहारिक साझेदारियों पर जोर दे रहा है, जबकि अफ्रीका में वह एक सम्मानजनक और समान भागीदारी आधारित दृष्टिकोण अपना रहा है. यह नीति भारत को एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करती है. हालांकि मुक्त व्यापार समझौतों से मिलने वाले लाभों का पूरा उपयोग तभी संभव है, जब भारत घरेलू स्तर पर बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक्स, विनिर्माण और श्रम सुधारों पर ध्यान दे. वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और केवल बाजार पहुंच पर्याप्त नहीं होगी. इसके लिए घरेलू क्षमताओं को भी सुदृढ़ करना होगा. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तीनों देशों में प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ किया गया संवाद भी विशेष महत्व रखता है. प्रवासी भारतीय न सिर्फ आर्थिक योगदानकर्ता हैं, वे दो देशों के बीच विश्वास और निरंतरता का सेतु हैं. कुल मिलाकर, यह यात्रा भारत की उस विदेश नीति को प्रतिबिंबित करती है, जो अनिश्चित और बदलते वैश्विक परिदृश्य में अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी आगे बढ़ाने का प्रयास करती है. जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान के साथ संबंधों को सुदृढ़ कर भारत पश्चिम एशिया और अफ्रीका में अपनी उपस्थिति को विस्तार दे रहा है और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी भूमिका को और बल प्रदान कर रहा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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आनंद कुमार

लेखक के बारे में

आनंद कुमार

Contributor

डॉ. आनंद कुमार नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (MP-IDSA) में एसोसिएट फेलो हैं। डॉ. कुमार अब तक चार पुस्तकें लिख चुके हैं और दो संपादित ग्रंथों का संपादन कर चुके हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक Strategic Rebalancing: China and US Engagement with South Asia है। और पढ़ें

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