Rural Economy: नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलेपमेंट) ने पिछले साल करवाये गये ग्रामीण आर्थिक स्थिति और धारणा सर्वेक्षण (आरइसीएसएस) के निहितार्थों का खुलासा एक रिपोर्ट के रूप में हाल में किया. इसके अनुसार, हमारा देश समावेशी विकास की संकल्पना को साकार करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक सुधार की गति तेज हुई है और ग्रामीणों की आय के साथ उनकी खपत में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इससे ग्रामीण इलाकों में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयी है. आय और खपत में वृद्धि में महंगाई दर के कम रहने की भी बड़ी भूमिका है. खुदरा महंगाई दर नवंबर में 0.71 फीसदी रही, जो अक्तूबर की 0.25 फीसदी की महंगाई दर से 46 आधार अंक अधिक है. शहरी क्षेत्रों में महंगाई दर 1.40 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह 0.10 फीसदी रही. विगत महीनों में अनाज की महंगाई दर 0.1 फीसदी तक गिर गयी, जो 50 महीनों का निचला स्तर था. नवंबर में सब्जियों की कीमतों में 22.20 फीसदी, दालों और उससे जुड़े उत्पादों की कीमतों में 15.86 फीसदी और मसालों की कीमतों में 2.89 फीसदी की कमी दर्ज की गयी. परिवहन और संचार में महंगाई दर नवंबर में 0.88 फीसदी रही, जो अक्तूबर में 0.94 फीसदी के स्तर पर थी. महंगाई में कमी आने से आमजन की आय में तो वृद्धि हुई ही है, साथ ही साथ उसकी क्रयशक्ति में भी इजाफा हुआ है. महंगाई के कम रहने की वजह से ही रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी से अब तक रेपो दर में चार बार कुल 1.25 फीसदी की कटौती की, जिससे बैंक ऋण ब्याज दर में कमी आयी. इससे लोगों की बचत में इजाफा और उपभोग में वृद्धि हो रही है. नाबार्ड के सर्वेक्षण में कहा गया है कि सितंबर, 2024 के बाद लोगों की आय बढ़ने और उपभोग में वृद्धि होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूत सुधार दर्ज हुआ है. इस अवधि में 80 फीसदी परिवारों की आय बढ़ी है और इनका खर्च भी बढ़ा है. पिछले वर्ष की तुलना में 29.3 फीसदी परिवारों के निवेश में भी वृद्धि देखी गयी है, जो अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है. हालांकि इस दौरान 15.7 प्रतिशत परिवार की आय में कमी भी आयी है. सर्वेक्षण में 75.9 फीसदी लोगों ने उम्मीद जतायी है कि उनकी आय अगले वर्ष भी बढ़ेगी.
जीएसटी स्लैब को युक्तिसंगत बनाने से ग्रामीणों की बचत में उल्लेखनीय इजाफा हो रहा
दरअसल, जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के स्लैब को युक्तिसंगत बनाने से ग्रामीणों की बचत में उल्लेखनीय इजाफा हो रहा है, जिसका इस्तेमाल वे बचत और खर्च करने में कर रहे हैं. सरकार की सब्सिडी योजनाओं से भी ग्रामीण परिवारों को मदद मिल रही है. औसत मासिक आय का 10 फीसदी हिस्सा सब्सिडी वाले भोजन, बिजली, रसोई गैस, उर्वरक, स्कूलों में मुफ्त भोजन, ड्रेस, किताब-कॉपी और अन्य कल्याणकारी हस्तांतरणों के माध्यम से पूरा हो रहा है. कुछ परिवारों के लिए मासिक सब्सिडी राशि उनकी कुल आय के 20 प्रतिशत से अधिक है, जो ग्रामीण मांग और उपभोग को स्थिर बनाये रखने में मददगार साबित हो रही है. तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की वजह से औपचारिक स्रोतों से ग्रामीणों की ऋण तक पहुंच उच्चतम स्तर तक पहुंच गयी है. सर्वेक्षण के अनुसार, 58.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने ऋण औपचारिक स्रोतों, यानी बैंकों से लिया है, जो कि अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है. जबकि सितंबर, 2024 में यह 48.7 प्रतिशत था. अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेने वाले ग्रामीणों की संख्या अभी करीब 20 प्रतिशत है, जो दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्र में अब भी वित्तीय समावेशन की पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता है. सरकारी बैंक इस दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं और उनके प्रयासों से देश में 57 करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री जनधन खाते खोले जा चुके हैं, जिसका उद्देश्य हर व्यक्ति को बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना है. इस तरह यह योजना ग्रामीणों को आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का काम कर रही है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था अगर मजबूत बनी रहती है, तो जाहिर है, भारत जैसे देश में अर्थव्यवस्था को अपने आप स्वाभाविक रफ्तार मिलती है.
चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 6.6 फीसदी रहने का अनुमान
देश की अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत बने रहने के कारण आइएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 6.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जबकि एडीबी (एशियाई विकास बैंक) ने भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. एडीबी के अनुसार, भारत जीएसटी एवं अन्य कर सुधारों और खपत में आयी तेज वृद्धि से एशिया का ग्रोथ इंजन बन गया है और स्थिर नीतिगत निर्णयों, मजबूत घरेलू मांग, सरकारी निवेश, वैश्विक कंपनियों के भारत में निवेश, रोजगार सृजन में तेजी और शेयर बाजार के मजबूत बने रहने की वजह से 2026 से 2035 के दौरान भारत की विकास दर में अभूतपूर्व तेजी आने का अनुमान है. फिलहाल महंगाई के नरम रहने, जीएसटी स्लैबों को युक्तिसंगत बनाये जाने, सरकारी सब्सिडी, जनधन और मुद्रा योजना से ग्रामीण क्षेत्र में व्यक्ति और परिवार आर्थिक रूप से सबल बन रहे हैं और इससे देश में समावेशी विकास को बल मिल रहा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)










